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"चिंता चिता समान है और चिंता चिंतन करने से ही जाएगी। " मैंने  उपरोक्त पंक्ति को ही मेरे जीवन का आधार बनाया है. परिस्थिति  चाहे अच्छी हो या बुरी, मैंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया है.  परिस्थिति पर चिंता न करके मैंने चिंतन पर हमेशा ही ध्यान केंद्रित किया है। इसी कारणवश मैंने मेरे ब्लॉग का नाम ही चिंतन रखा है।  आज करीब २-३ साल बाद दोबारा से इस कार्य को आगे बढ़ाने की मंशा हुई है।   मैं पेशे से एक बैंकर हूँ।  मेरी पृष्टभूमि एक किसान परिवार की है। एक कृषि पृष्ठ्भूमि  से बैंकर होने के नाते मैंने परिस्थियों को काफी नजदीक से देखा है और कई बार समाज में घटने वाली परिस्थियों से अपने आप को अलग कर पाना मेरे लिए संभव नहीं हो पाता।  वहीँ से ही मैंने ब्लॉग लिखने की कल्पना की।  हम सब समाज का ही हिस्सा हैं।  मनुष्य जीव के बगैर हम समाज की कल्पना नहीं कर सकते। प्रत्येक जीव अपनी क्षमता अनुरूप इस समाज को कुछ न कुछ देता जरूर है  जो कि देने वाले की प्रवर्ति पर निर्भर करता है। अगर हमे समाज को बनाये रखना है तो इसके सामाजिक मूल्यों को भी बना के रखना पड़ेगा।  बिना सामाजिक मूल्यों के समाज की क